जन्माष्टमी पूजा के लिए 44 मिनट बेहद खास, इस समय पूजा बेहद शुभ फलदायी

जन्माष्टमी का व्रत हर साल भाद्र मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है। इस साल भाद्र कृष्ण अष्टमी तिथि 19 अगस्त को है लेकिन जो लोग जन्माष्टमी व्रत करते हैं उन्हें सप्तमी वृद्धा अष्टमी तिथि में 18 अगस्त को ही व्रत करना चाहिए।

लेकिन जो लोग जन्माष्टमी उत्सव व्रत करते हैं उनके लिए व्रत 19 अगस्त को होगा। दरअसल जन्माष्टमी पर तिथियों का ऐसा संयोग बना है कि दो दिन अष्टमी तिथि लग जा रही है।

18 अगस्त को रात में 9 बजकर 21 मिनट से अष्टमी तिथि लगेगी और 19 अगस्त को सुबह से ही अष्टमी तिथि रहेगी लेकिन 19 अगस्त को रात 10 बजकर 59 मिनट पर ही अष्टमी समाप्त हो जाएगी।

18 अगस्त को निशीथ काल में अष्टमी तिथि होने से गृहस्थजनों के लिए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत इसी दिन करना शास्त्र के अनुकूल होगा।

जन्माष्टमी के दिन व्रत रखने वाले को सुबह स्नान ध्यान करके सबसे पहले बाल गोपाल की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद व्रत का संकल्प लेकर पूरे दिन निराहार रहकर व्रत करना चाहिए। जो लोग निराहार नहीं रह सकते वह चाहें तो कुछ फल खा सकते हैं।

जन्माष्टमी व्रत का ऐसे लें संकल्प

व्रती को इस दिन मन, वचन से सात्विक व्यवहार करना चाहिए। किसी के लिए बुरा विचार न लाएं और किसी से बुरा न कहें। भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का ध्यान करें। जन्माष्टमी व्रत में मध्यरात्रि की पूजा का सबसे अधिक महत्व है।

जन्माष्टमी व्रत का ऐसे लें संकल्प

श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्र कृष्ण अष्टमी तिथि की मध्य रात्रि में रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इसलिए जन्माष्टमी में मध्यरात्रि के समय की जानी वाली पूजा का सबसे अधिक महत्व है।

जन्माष्टमी पर 44 मिनट सबसे खास

अबकी बार रात के 12 बजकर 3 मिनट से रात 12 बजकर 47 मिनट तक नीशीथ कल रहेगा। यानी कुल 44 मिनट तक का समय है जो श्रीकष्ण के भक्तों के लिए सबसे खास है। इस समय लड्डू गोपाल और छोटे कान्हाजी का 16 ऋंगार करके उनकी विधिवत पूजा करें।

जन्माष्टमी पर 44 मिनट सबसे खास

कान्हा को स्नान करें। नए वस्त्र पहनाएं। बांसुरी और गौ भी कान्हा के साथ रखें। फिर पुष्प और पंचामृत से कान्हा की पूजा करके माखन मिसरी का भोग लगाएं। 

जन्माष्टमी की रात क्या करें

इसी प्रसाद को ग्रहण करके व्रती को व्रत संपन्न करना चाहिए और फिर रात में फलाहार करके रात्रि जागरण करते हुए अष्टमी व्रत पूरा करना चाहिए। अगले दिन अन्न जल ग्रहण करें। इस तरह से जन्माष्टमी व्रत रखने से व्रत का अधिक पुण्य प्राप्त होगा।

जन्माष्टमी की रात क्या करें